नई दिल्ली: अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा को भारत रत्न सम्मान दिए जाने की वकालत की है. पेमा खांडू ने मंगलवार को न्यूज एजेंसी पीटीआई को दिए इंटरव्यू में कहा कि वह जल्द केंद्र सरकार को पत्र लिखकर तिब्बत के आध्यात्मिक गुरु को भारत का सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार दिए जाने की सिफारिश करेंगे.

14वें दलाई लामा को भारत रत्न दिए जाने के समर्थन में सांसदों के एक समूह के अभियान के बारे में उन्होंने कहा कि यह दलाई लामा ही थे जिन्होंने नालंदा स्कूल ऑफ बुद्धिज्म का प्रचार और विस्तार किया. सीएम पेमा खांडू ने कहा, "आठवीं शताब्दी में नालंदा विश्वविद्यालय से कई गुरु तिब्बत गए. उस समय तिब्बत में 'बोन' धर्म था. बोन धर्म और बौद्ध धर्म के मिलने से तिब्बती बौद्ध धर्म की अवधारणा का उदय हुआ और इस प्रकार बौद्ध धर्म पूरे तिब्बत में फैला."

खांडू ने कहा कि तिब्बती बौद्ध धर्म की अवधारणा लद्दाख से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक फैली.

14वें दलाई लामा को 1959 में तिब्बत पर चीनी आक्रमण के बाद भारत भागने पर मजबूर होना पड़ा था. तब से वह अन्य निर्वासित तिब्बतियों के साथ हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में रह रहे हैं.

खांडू ने कहा कि दलाई लामा उस समय तिब्बत में मौजूद सभी बड़े मठों की परंपराएं, शाक्य जैसी विभिन्न परंपराएं, तिब्बत में मौजूद सभी पुरानी बौद्ध परंपराएं भारत लाए. उन्होंने कई जगहों पर, विशेषकर दक्षिण भारत में संस्थान स्थापित किए. इन मठों से भारतीय हिमालयी क्षेत्र के बौद्धों को काफी लाभ हुआ.

खांडू ने कहा, "हमारे भिक्षु वहां अध्ययन करने जाते, फिर उन प्रथाओं को अपनी भूमि, अपने स्थानों पर ले आते. तो अगर हम उस दृष्टिकोण से देखें तो 14वें दलाई लामा ने भारत की प्राचीन नालंदा परंपरा के संरक्षण और संवर्धन में बहुत बड़ी भूमिका निभाई है? इस दृष्टिकोण से भारत रत्न की मांग बहुत अच्छा कदम है."

पूर्व मं विदेशी मूल की तीन प्रमुख हस्तियों - मदर टेरेसा (1980), अब्दुल गफ्फार खान (1987) और नेल्सन मंडेला (1990) को भारत रत्न से सम्मानित किया गया है.

पेमा खांडू बौद्ध धर्म के अनुयायी हैं. दलाई लामा के उत्तराधिकारी के बारे में पूछे जाने पर मुख्यमंत्री खांडू ने कहा कि यह हमेशा चर्चा का विषय रहा है. उन्होंने कहा, "पहले दलाई लामा से लेकर वर्तमान 14वें दलाई लामा तक दलाई लामा परंपरा 600 से अधिक वर्षों से निरंतर जारी है. 'गादेन फोडरंग ट्रस्ट' अगले दलाई लामा की पहचान का जिम्मा संभालता है, जो वर्तमान दलाई लामा के निधन के बाद ही शुरू होगी. कोई जल्दबाजी नहीं है और पूरी प्रक्रिया में कड़े नियमों का पालन होता है."

चीन की कोई भूमिका नहीं होनी चाहिए...
उन्होंने कहा कि ऐसी भी अटकलें थीं कि क्या दलाई लामा परंपरा जारी रहेगी और क्या अगली दलाई लामा कोई महिला हो सकती है. खांडू ने कहा, "लेकिन 90वें जन्मदिन से पहले, बौद्ध परंपराओं के सभी प्रमुखों ने बैठक की और इस बात पर सहमति जताई कि परंपरा जारी रहेगी. चीन ने इस पर आपत्ति जताई है... चीन की आपत्तियां उसकी अपनी नीतियों पर आधारित हैं. लेकिन दलाई लामा परंपरा को मुख्यतः हिमालयी क्षेत्र और तिब्बती बौद्धों द्वारा मान्यता प्राप्त है. इस मामले में चीन की कोई भूमिका नहीं होनी चाहिए."